Monday, June 8, 2009

भारतीय संस्क्रति कर्म को गहरा आघात

 

भारतीय संस्क्रति कर्म को गहरा आघात

 

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति आर्जित कर चुके रगकर्मी हबीब तन्वीर जी के निधन से भारत के सम्पूर्ण संस्क्रिति जगत को गहरा झट्का लगा है। विषेश रूप से भोपाल के रंग कर्म के लिये यह अपूर्णीय क्षति है। एक सितंबर, 1923 को छत्तीसगढ़ के रायपुर में जन्मे हबीब को उनके बहुचर्चित नाटकों 'चरणदास चोर' और 'आगरा बाजार' के लिए हमेशा याद किया जाएगा। 'चरनदास चोर' नाम का नाटक लिखा, जो कि 18वीं सदी के शायर नज़ीर अकबराबादी पर आधारित था। नजीर मिर्जा गालिब की पीढ़ी के शायर थे।habeeb

हबीब ने एक पत्रकार की हैसियत से अपने करियर की शुरूआत की और रंगकर्म तथा साहित्य के क्षेत्र मे निरंतर योगदान देते रहे। अपनी यात्रा के दौरान उअन्होंने कुछ फिल्मों की पटकथाएं भी लिखीं तथा उनमें काम भी किया। रिचर्ड एटनबरो की फिल्म 'गांधी' में भी उन्होंने एक छोटी सी भूमिका निभाई थी।

१९४५-४६ मे हबीब साहब रेडिओ मे भी काम किया।  उन्होंने भोपाल में नए थिएटर की भी स्थापना की। भोपाल गैस त्रासदी पर बनी एक फिल्म में भी उनकी भूमिका है।

वे बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न कलाकार थे। थिएटर की दुनिया पर उअन्हों ने एक अमिट छाप छोडी ।

 

Wednesday, June 3, 2009

अब्राहम लिन्कन का पत्र

 


यह अब्राहम लिन्कन का पत्र है। आप सब इस पत्र के मध्यम से आपने बच्चों के भविष्य के बारे मे अवश्य सोचें कि क्या आपके बच्चे सबसे पहले इन्सानियत की शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं? इन्जीनियर, डा० , पैसे कमाने वाले मसीन बनने के पहले क्या आदमी बन पा रहे हैं।
 

प्रभातखबर से साभार-

Linkan Ka Patra

Tuesday, June 2, 2009

उपद्रवियों से शक्ति से निबटे सरकार


प्रशासन ऐसे तत्वों से शख्ती से पेश आएं
जिस क्षेत्र में घटना होती हैं वहाँ सार्वजनिक जुर्माना लगाने की व्यवस्था करे

कल जिस तरह से बिहार के खुसरूपुर में अदना सी बात पर चंद प्रदर्शनकारियों ने खेल-खेल में प्रशासन को अंगूठा दिखाते हुए ट्रेन के कई डिब्बों को आग के हवाले कर दिया वह एक अत्यंत ही शर्मनाक हादशा है। ऐसे अनेक उदाहरण आए दिन हमारे सामने आते रहते हैं जब साधारण सी बात पर चंद लोग हुर्दंग मचाते हुए गुस्से का इजहार करने हेतु राष्ट्रीय संपत्तियों पर बरबस टूट परते हैं और उन्हें भारी क्षति पहुँचाते हैं। निश्चय ही हुर्दंगियों में राष्ट्र के सुसंस्कृत नागरिक नहीं रहते। वे सभी गैर जिम्मेवार, अपसंस्कृति के पृष्ट पोषक और छुटभैये गुंडा तत्व होते हैं। ये वही तत्व होते हैं जो गाँव मुहल्लों के गलियों में चक्कर लगाने वाले तथा चौक-चौराहों, नुक्करों पर अड्डाबाजी करने वाले लोग होते हैं। ऐसे कुछ लोग हर प्रांत में होते हैं जो बात-बात पर इस तरह का गैर जिम्मेदाराना हर्कत करते हैं। प्रशासन को चाहिए कि ऐसे तत्वों से शख्ती से पेश आएं। राष्ट्रीय सम्पत्तियों की सुरक्षा हर कीमत पर सुनिश्चित किया जाना चाहिए। ऐसे हरकतों से आम जन को घोर असुविधाओं का सामना करना पड़ता है। अनेक लोगों को ऐसी स्थिति के कारण जीवन के कई महत्वपूर्ण अवसर खोना पड़ जाता है। जिसका कचोट जीवन पर्यंत रह जाता है। कई बीमार जो इलाज हेतु यात्रा कर रहे होते हैं उन्हें ऐसे हो-हंगामा के कारण जीवन मरण के बीच संघर्ष करना पड़ता है। कई छात्र परीक्षा देने जा रहे थे, कई नवयुवक नौकरी मे यगदान देने जा रहे थे, कितने लोग सादी के लिये जा रहे थे। अनेक कार्यों से अनेक लोग घर से निकले थे सफर में सबों को घोर परेशानी का सामना करना पडा।
सरकार को चाहिए कि जिस क्षेत्र में इस तरह की घटना होती हैं वहाँ सार्वजनिक जुर्माना लगा कर राष्ट्रीय क्षति की भरपाई की व्यवस्था करे साथ ही प्रशासन द्वारा ऐसे उदाहरण पेश किए जाने चाहिए जिससे ऐसे हर्कत करने से पूर्व गुंडा तत्व सौ बार सेाचें। टीवी चैनलों तथा पास परोस में इकट्ठे प्रत्यक्ष दर्शियों से इस असमाजिक तत्वों का शिनाख्त कर उनपर शख्त से शख्त कानूनी कारवई किया जाना आवश्यक है। आखिर राष्ट्रीय सम्पत्ति जो आम जन के पैसों से बना है उसकी सुरक्षा में ढील और लापरवाही बरतना घोर असंवैधानिक कारवाई है। इसी ढील के कारण ऐसे वारदात घटित होते हैं। प्रजातंात्रिक प्रणााली के उपर एक काला धब्बा है। ऎसी स्थिति में सरकार को कभी नही झुकना चाहिए। निर्णय वापस लेना सरकार की बरी भूल है।